आम आदमी पार्टी लगातार तीसरी बार दिल्ली में सरकार बनाने की तरफ बढ़ रही है। रुझान बता रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल एक बार फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। उनकी रणनीति ने आम आदमी पार्टी को फिर दिल्ली की सत्ता तक पहुंचा दिया है। उनपर भाजपा का हर वार खाली गया। केजरीवाल ने जो रणनीति अपनाई उसने भाजपा को उसके ही जाल में फंसा दिया।
एक के बाद एक कई झटके
इस मुकाम तक पहुंचने का अरविंद केजरीवाल का सफर कतई आसान नहीं रहा है। 2012 में पार्टी के उदय के बाद से ही उन्होंने की झटके खाए। 2013 में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई तो खूब हमले झेले, समर्थक भी किनारा करने लगे। उनकी सरकार महज 49 दिन ही चली। फिर शुरू हुआ सियासी तूफानों का दौर। एक के बाद एक साथी बिछड़ते चले गए। कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे साथियों ने मतभेदों के चलते उनसे किनारा कर लिया।
केजरीवाल में आए कई बदलाव
कभी खुलेआम खुद को अराजक कहने वाले केजरीवाल में कई बदलाव आए हैं। अब वह पहले की तरह आक्रामक नजर नहीं आते हैं। एक अराजक नेता की जगह वह अब दिल्ली का बेटा बन गए हैं। उनके लिए यह चुनाव करो या मरो का था और उन्होंने जबरदस्त जीत हासिल कर ली।
प्रचार के दौरान खुद को दिल्ली का बेटा कहने वाले केजरीवाल वाकई दिल्ली का बेटा साबित हुए।
बदली अपनी रणनीति
आप की रणनीति इस बार भाजपा पर भारी पड़ी। वह किसी तरह के जाल में नहीं फंसे। विवादों वाले मुद्दों से खुद को दूर रखा और प्रचार में विकास के मुद्दों को ही अपना हथियार बनाया। केजरीवाल ने इसबार हिंदू-मुस्लिम मुद्दे से पूरी तरह दूरी बनाई रखी। याद कीजिए 2016 में जेएनयू छात्र नजीब अहमद की गुमशुदी को लेकर मायापुरी थाने पहुंच गए थे। 15 दिसंबर 2019 को जब जामिया में पुलिस और छात्रों की भिड़ंत हुई थी तब भी केजरीवाल पूरे मामले से दूर रहे। जेएनयू में 5 जनवरी 2020 को कुछ नकाबपोशों ने हॉस्टलों में घुसकर छात्रों पर हमला बोला, केजरीवाल किसी भी घायल छात्र के पास नहीं गए। बस ट्वीट कर अपनी चिंता जताते रहे।
शाहीन बाग और नागरिकता कानून पर चुप्पी
शाहीन बाग और नागरिकता कानून पर भी केजरीवाल पूरी तरह मौन साधे रहे। उन्होंने बड़ी चालाकी से कांग्रेस को ही इस मुद्दे पर आगे रहने दिया। शाहीन बाग पर तो वह एक बार भी नहीं बोले। भाजपा के लाख उकसावे के बाद भी वह चुप ही रहे। अगर दो साल पहले का वक्त होता तो वह शाहीन बाग धरनास्थल तक जरूर पहुंचते, लेकिन इस बार उन्होंने बयान तक नहीं दिया। शायद उन्हें पता था कि आक्रामक तरीके से केंद्र सरकार और भाजपा का विरोध कर रही कांग्रेस ही उन्हें (आप) फायदा पहुंचाएगी। अब नतीजों को देखकर भी कुछ ऐसा ही लग रहा है।
कहां तो भाजपा उन्हें हिंदू विरोधी साबित करने पर तुली थी, केजरीवाल ने हनुमान भक्त बनकर उसे पूरी तरह उलझा दिया। एक टीवी चैनल पर उन्होंने हनुमान चालीसा गाकर सुनाई तो भाजपा नेताओं ने उनपर हमला बोल दिया। इसे भी केजरीवाल ने अपने पक्ष में ही भुना लिया। इसी तरह जब वह हनुमान मंदिर में दर्शन करने गए तो भाजपा के मनोज तिवारी ने उन्हें फिर निशाना बनाया। केजरीवाल ने फिर विनम्रता से आरोपों को खारिज कर दिया। अब वह भाजपा की टक्कर के हिंदू नजर आने लगे थे लेकिन उन्होंने एक महीन लकीर भी खींची थी जो उन्हें मुस्लिम वोटरों के करीब भी बनाए रखती थी।
उन्होंने हर कदम पर खुद को हिंदू आईडेंटीटी के आसपास ही रखा लेकिन आक्रामक नहीं हुए। उन्होंने भाजपा नेताओं को फेक हिंदू बताया। उनका ये ट्वीट बताता है कि उन्होंने भाजपा को संयमित अंदाज में निशाना बनाया। ये ट्वीट था- गीता में लिखा है कि मैदान छोड़कर नहीं भागना चाहिए। एक सच्चा हिंदू जो होता है, बहादुर होता है, वो मैदान छोड़कर नहीं भागता है। उनका संदेश साफ था कि भाजपा का हिंदू वोटों पर एकाधिकार नहीं है वह उनका प्रतिनिधित्व नहीं करती है।
विवादित नेताओं से बनाई दूरी
इसी के साथ उन्होंने आप के विवादित मुस्लिम नेताओं से दूरी बनाकर रखी। चाहे बात शोएब इकबाल की हो या ओखला से उम्मीदवार अमानतुल्लाह खान हों, उन्होंने दोनों के लिए ही उनके इलाकों में प्रचार नहीं किया। इस तरह उन्होंने भाजपा को हमले का मौका ही नहीं दिया। जहां शोएब इकबाल कई पार्टियों में रहकर चुनाव जीत चुके हैं, वहीं अमानतुल्लाह का पूरा सियासी करियर ही विवादित रहा है। उनपर भ्रष्टाचार से लेकर भड़काऊ भाषण देने के आरोप लग चुके हैं। भले ही केजरीवाल इनके प्रचार में नहीं गए, लेकिन टिकट देकर साफ कर दिया कि उन्हें जीताऊ उम्मीदवारों पर दांव खेलने से परहेज नहीं है।
2020 के केजरीवाल 2013 और 2014 और 2015 के केजरीवाल से बहुत अलग दिखे। 2013 में वह बेहद आक्रामक थे। हर विवाद में खुद को घसीट लेते थे। 2014 में भी उनका रुख किसी अड़ियल नेता की तरह था। नरेंद्र मोदी से टक्कर लेने वह दिल्ली छोड़ वाराणसी पहुंच गए थे। पूरे देश में पैर पसारने के प्रयास शुरू कर दिए। 2015 में उन्होंने हालात को समझा और दिल्ली की जनता के बीच गए। अपनी भूल की माफी मांगी। जनता ने उन्हें सिर आंखों पर बैठाते हुए 67 सीटें दीं।
आप ने पूछा- केजरीवाल बनाम कौन?
2014 और 2019 में भाजपा पूछती थी कि मोदी बनाम कौन? 2020 में इसी तर्ज पर आप ने पूछना शुरू किया- केजरीवाल बनाम कौन? आप ने 1 जनवरी 2020 को पोस्टर लगाकर पूछा भी कि भाजपा का सीएम उम्मीदवार कौन है। 4 फरवरी को केजरीवाल ने भाजपा और अमित शाह को चुनौती दे डाली कि वह अपने सीएम उम्मीदवार का नाम बताएं, मैं बहस करना चाहता हूं। उन्होंने अगले दिन एक बजे तक का वक्त भी दिया।
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